प्रखर समाजवादी राम मनोहर लोहिया
राम मनोहर लोहिया एक स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर समाजवादी और सम्मानित राजनीतिज्ञ थे।
- बे आजाद भारत में पहले इंसान थे। जिन्होंने खुल कर नेहरु के खिलाफ मोर्चा खोला,
- जिस ज़माने के बुद्धिजीवी नेहरु के खिलाफ बोलने की सोच भी नहीं सकते थे।
- वैसे समय में उन्होंने नेहरु के खिलाफ खुल कर बोला।
- राम मनोहर ने हमेशा सत्य का अनुकरण किया और आजादी की लड़ाई में अद्भुत काम किया।
- भारत की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और उसके बाद ऐसे कई नेता आये
- जिन्होंने अपने दम पर राजनीति का रुख़ बदल दिया
- उन्ही नेताओं में एक थे राममनोहर लोहिया।
- वे अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्वी समाजवादी विचारों के लिए जाने गए
- और इन्ही गुणों के कारण अपने समर्थकों के साथ-साथ उन्होंने अपने विरोधियों से भी बहुत सम्मान हासिल किया।
प्रखर समाजवादी राम मनोहर लोहिया जी का जन्म
- राम मनोहर लोहिया जी का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के ग्राम अकबरपुर जिला फैजाबाद (अयोध्या ) में हुआ था।
- उनकी मां का नाम चन्द्री था जो एक स्कूल में शिक्षिका थीं। उनके पिता का नाम हीरालाल था जो एक राष्ट्रभक्त थे।
- जब लोहिया जी दो ढाई साल के थे तभी उनकी मां का निधन हो गया था।
- जिसके बाद लोहिया जी के पिता चूकि बो एक राष्ट्रभक्त थे।
- इसलिये लोहिया जी को बचपन से ही विभिन्न रैलियों और विरोध सभाओं के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने की प्रेरणा देते रहते थे।
- उनके जीवन में नया मोड़ तब आया जब जो महात्मा गांधी उनके घर पहुचे उनके पिता जो महात्मा गांधी के घनिष्ठ अनुयायी थे
- गांधी से मिलाने के लिए राम मनोहर को अपने साथ लेकर गए. राम मनोहर गांधी के व्यक्तित्व और सोच से बहुत प्रेरित हुए तथा जीवनपर्यन्त गाँधी जी के आदर्शों का समर्थन किया।
प्रखर समाजवादी राम मनोहर लोहिया जी का संघर्ष
- वर्ष 1921 में वे पंडित जवाहर लाल नेहरू से पहली बार मिले और कुछ वर्षों तक उनकी देखरेख में कार्य करते रहे।
- लेकिन बाद में उन दोनों के बीच विभिन्न मुद्दों और राजनीतिक सिद्धांतों को लेकर टकराव हो गया।
- 18 साल की उम्र में वर्ष 1928 में युवा लोहिया ने ब्रिटिश सरकार द्वारा गठित ‘साइमन कमीशन’ का विरोध करने के लिए प्रदर्शन का आयोजन किया।
- उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा उनके गाँव अकबरपुर में हुई
- फिर वो मुबई में भी पढ़ाई लिखाई की वह मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद इंटरमीडिएट में दाखिला बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कराया।
- उसके बाद उन्होंने वर्ष 1929 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की
- और पीएच.डी. करने के लिए बर्लिन विश्वविद्यालय, जर्मनी, चले गए, जहाँ से उन्होंने वर्ष 1932 में इसे पूरा किया।
- वहां उन्होंने शीघ्र ही जर्मन भाषा सीख लिया और उनको उत्कृष्ट शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए वित्तीय सहायता भी मिली।
- बे अपनी पूरी जिंदगी समाज के लिए लड़ते हुये
- 57 साल की उम्र में 12 अक्टूबर , 1967 को नई दिल्ली में निधन हो गया।