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किसान बिल राज्यसभा से पास, समाजवादी पार्टी ने बताया किसानों का डेथ वारंट
देश में सरकार चाहे किसी की भी हो लेकिन सबसे अहम मुद्दा होता है किसान की मदद करना और उनके पक्ष में सही फैसले लेना। जो कि हर सरकार के लिए काफी कठिन साबित होता है। सरकार के एक गलत फ़ैसले से किसान की साल भर की मेहनत मिट्टी में मिल जाती है। कृषि सुधार को लेकर एक खबर सामने आई है। बता दें कि कृषि सुधार से जुड़े बिल को लेकर समाजवादी पार्टी के साथ पूरा विपक्ष लगातार सरकार पर हमला बोल रहा हैं। उनका कहना है कि यह बिल किसान के विरोध में है।
आज राज्य सभा में विपक्ष के हंगामे के बीच किसान बिल पास हो गया है।
कृषि संबंधित दो बिल ध्वनि मत से पास हुए हैं। उच्च सदन में बिल पर
चर्चा के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जवाब दिया। तोमर के जवाब
देने के दौरान विपक्ष के सांसदों ने जोरदार हंगामा किया। सांसदों ने हंगामा
उपसभापति के फैसले पर किया। दरअसल, सदन की कार्यवाही 1 बजे पूरी होनी थी।
उपसभापति ने कार्यवाही को विधेयक के पारित होने तक बढ़ाने का फैसला लिया।
विपक्ष के सांसदों ने इसपर हंगामा शुरू कर दिया। सांसदों ने रूल बुक फाड़ दी और माइक को भी तोड़ दिया।
राज्यसभा से दो बिल पास
विपक्ष के जोरदार हंगामे के बीच रविवार को कृषि
से संबंधित दो बिल राज्यसभा से पास हो गए। पहला बिल है
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण)
विधेयक, 2020 और तो दूसरा बिल कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण)
कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक।
किसान बिल की प्रमुख खामियां
- अन्नदाताओं के लिए काम करने वाले संगठनों और कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इस कानून से किसान अपने ही खेत में सिर्फ मजदूर बनकर रह जाएगा. केंद्र सरकार पश्चिमी देशों के खेती का मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है. कांट्रैक्ट फार्मिंग में कंपनियां किसानों का शोषण करती हैं. उनके उत्पाद को खराब बताकर रिजेक्ट कर देती हैं. दूसरी ओर व्यापारियों को डर है कि जब बड़े मार्केट लीडर उपज खेतों से ही खरीद लेंगे तो आढ़तियों को कौन पूछेगा. मंडी में कौन जाएगा.
- जब किसानों के उत्पाद की खरीद मंडी में नहीं होगी तो सरकार इस बात को रेगुलेट नहीं कर पाएगी कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिल रहा है या नहीं. एमएसपी की गारंटी नहीं दी गई है. किसान अपनी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी मांग रहे हैं. वो इसे किसानों का कानूनी अधिकार बनवाना चाहते हैं, ताकि तय रेट से कम पर खरीद करने वाले जेल में डाले जा सकें. इस कानून से किसानों में एक बड़ा डर यह भी है कि किसान व कंपनी के बीच विवाद होने की स्थिति में कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया जा सकता. एसडीएम और डीएम ही समाधान करेंगे जो राज्य सरकार के अधीन काम करते हैं. क्या वे सरकारी दबाव से मुक्त होकर काम कर सकते हैं?
- एक्ट में संशोधन बड़ी कंपनियों और बड़े व्यापारियों के हित में किया गया है. ये कंपनियां और सुपर मार्केट सस्ते दाम पर उपज खरीदकर अपने बड़े-बड़े गोदामों में उसका भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे.
समाजवादी पार्टी ने बताया किसानों का डेथ वारंट
समाजवादी पार्टी के महासचिव एव राज्यसभा सांसद प्रो.रामगोपाल यादव ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पर तंज कसते हुए कहा कि मेरा मन कह रहा है कि ये बिल आपने बनाया ही नहीं है। कोई किसान का बेटा इस तरह का बिल नहीं बना सकता है। प्रो.रामगोपाल यादव ने साथ ही इस बिल को ‘किसानों का डेथ वारंट’ बताया।
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