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साइकिल 7 दिन में गुड़गांव से दरभंगा पहुँची लेकिन PM मोदी की रेल 9 दिन में नहीं पहुँची

भारत में प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में पैदल या निजी साधनों से अपने गाँव अपने घर के लिये निकले
तो सड़के भर गई। 13 साल की ज्योति ने अपने बूढ़े पिता को साइकिल पर बैठाकर गुड़गांव से दरभंगा 7 दिन में 1200 किलोमीटर का सफर तय कर पहुँच गई तो बही मोदी की रेल 9 दिन में भी ना पहुँच सकी।

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मोदी सरकार ने विपक्ष की आलोचनाओं के चलते कुछ श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई।
लेकिन इन ट्रेनों को लेकर लगता है कि मोदी का रेलवे गंभीर नहीं है। ये ट्रेनें रास्ता भटक
जा रही है। और कहीं की कहीं पहुंच जा रही है। इससे श्रमिकों की समस्या बढ़ जा रही है।
ऐसा ही एक वाक्या सामने आया जिसमें गुजरात के सूरत से करीब 6000 श्रमिकों को लेकर
सीवान के लिए निकलीं दो ट्रेन क्रमश: उड़ीसा के राउरकेला और बेंगलुरु पहुंच गईं। 16 मई
को उड़ीसा के सूरत से निकली दोनों ट्रेनों को सीवान 18 मई तक पहुंचना था। लेकिन एक ट्रेन
राउरकेला और दूसरी बेंगलुरु पहुंच गईं।

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जब वाराणसी रेल मंडल की खोजबीन की तो उसके बाद पता लगा कि
जिस ट्रेन को 18 मई को सिवान पहुंचना था, वह 9 दिन बाद सोमवार 25 मई को पहुंची हैं।

ट्रेनों में यात्रा कर रहे प्रबासी मजदूरो में से कई ने भूख, प्यास, गर्मी से दम तोड़ दिया।
इनमें मासूम भी, नौजवान भी और पकी उम्र के लोग भी सामिल हैं। सवाल यह हैं कि मजदूरों की मौत का जिम्मेदार कौन हैं।

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