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13 साल की ज्योति अपने पिता को साइकिल पर बैठाकर गुरुग्राम से दरभंगा पहुँच गई

कोरोना महामारी की बजह से पूरे देश लाॅकडाउन हैं।

अपने घरों से बाहर रोजी रोटी कमाने गये लोगों पर इस समय भारी संकट हैं।

गरीब मजदूर की अब उम्मीद हैं ‘साइकिल’

  • मजबूर मजदूर इधर उधर  भटक रहा हैं
  • कुछ लोगों ने अपने घर पहुँचने के लिए साइकिल से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर रहे हैं।
  • इसी कड़ी में ज्योति अपने पिता मोहन पासवान को साइकिल पर बिठा कर
  • हरियाणा (Haryana) के गुरुग्राम (गुड़गांव) से अपने घर बिहार (Bihar) के दरभंगा पहुंची है।
  • रास्ते में कई तरह की परेशानियां हुईं लेकिन हर बाधा को ज्योति बिना हिम्मत हारे पार करती गयी। ज्योति दो दिन तक भूखी भी रही
  • रास्ते में कहीं किसी ने पानी पिलाया तो कहीं किसी ने खाना खिलाया।
  • 13 साल की ज्योति ने एक हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी आठ दिन में तय किया।
  • वो एक दिन में 100 से 150 किलोमीटर अपने पिता को पीछे बिठा कर साइकिल चलाती थी।
  • जब कहीं ज्यादा थकान होती तो सड़क किनारे बैठ कर ही थोड़ा आराम कर लेती थी।
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ज्योति के पिता ई-रिक्शा चला कर करते थे गुजर-बसर

13 साल की ज्योति के पिता गुरुग्राम में किराए पर ई-रिक्शा चलाने का काम करते हैं

  • लेकिन कुछ महीने पहले उनका एक्सिडेंट हो गया था।
  • इसी बीच कोरोना संकट के बीच लॉकडाउन की घोषणा हो गयी।
  • ऐसे में ज्योति के पिता का काम ठप हो गया, ऊपर से ई-रिक्शा के मालिक का पैसों को लगातार दबाब बन रहा था।
  • ज्योति के पिता के पास न पेट भरने को पैसे थे, न ही रिक्शा के मालिक को देने के लिये।

  • ऐसे में ज्योति ने फैसला किया कि यहां भूखे मरने से अच्छा है
  • कि वो किसी तरह अपने गांव पहुंच जाए।
  • लॉकडाउन में यातायात के साधन नहीं होने की वजह से ज्योति ने दरभंगा तक की लंबी दूरी का सफर अपनी साइकिल से ही पूरी करने की ठानी
  • हालांकि ज्योति के पिता इसके लिए तैयार नहीं थे
  • लेकिन गरीबी की मजबूरी ऐसी थी की पिता को बेटी के निर्णय पर सहमति जतानी पड़ी।
  • इसके बाद दोनों कठिन परिस्थितियों का मुकाबला करते हए सात दिन में अपने गांव पहुच गये।
  • महज 13 साल की ज्योति को साइकिल चलाकर गांव पहुचने के बाद गांववाले इस छोटी सी बच्ची पर गर्व महसूस कर रहे हैं।
  • इस बहादुर बच्ची के जज्बे को सलाम करते हुए ग्रामीण निर्भय शंकर भारद्वाज ने कहा कि
  • ज्योति ने यह साबित कर दिया की बेटियां, बेटे से कम नहीं बल्कि उनसे एक कदम आगे हैं।

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