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लॉकडाउन में मजबूर मजदूरों का सहारा बनी साइकिल
कोरोना महामारी में गरीब मजदूरों का सहारा बनी साइकिल हैं।
साइकिल से लाखों लाख लोगों ने इस विपत्तिकाल में भरपूर साथ दिया
- जब सरकारों ने अपने हाथ खड़े किये तो यातायात का सबसे अच्छा साधन बनी साइकिल।
- गरीब मजदूर अपने घरों से दूर रोजी रोटी कमाने के लिए गया
- तो कोरोना के चलते देश में लॉकडाउन हो गया।
- और उसकी रोजी रोटी के कमाने के सारे साधन बंद हो गये।
- उनके पास जो जमा पूँजी थी बो भी खत्म होने लगी।
- तब उन्होंने अपने गाँव जाने का सोचा लेकिन लॉकडाउन के चलते सारे यातायात के साधन रेल बस आदि बंद हो गये
- और बेबस गरीब के पास लाचारी बेबसी के सिवाय कुछ भी ना बचा
- लेकिन उनके पास अपने गाँव पहुँचने के लिए एक रास्ता था बो था
- साइकिल से यात्रा करना और बहुत से लोगों ने यही
- किया उन्होंने बाजार से साइकिल खरीदी और निकल पड़े
- हजारों किलोमीटर दूर अपनी मंजिल की ओर।
- जब साइकिल से लोग हजारों किलोमीटर दूर अपने गाँव पहुँने तो लोगों ने उनके जस्बे को सलाम किया ।
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लॉकडाउन मजदूरों का सहारा बनी साइकिल की कहानी
- कोरोना महामारी में मीडिया रिपोर्ट सामने आई
- मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पूर्णबंदी में घर जाने को परेशान मजबूर मजदूरों के लिए साइकिल ही परिवहन का एक बड़ा माध्यम बचा है।
- जो श्रमिक हजारो किलोमीटर पैदल सड़क नहीं नाप सकते वे अपने बचे-कुचे पैसे से साइकिल खरीद रहे हैं।
- पूर्णबंदी में दिल्ली के प्रमुख बाजारों में मजदूरों को चोरी छिपे साइकिल बेंची जा रही है
- हालांकि दुकानदार बीमारी को देखते हुए फुटकर में रोजाना कुछ मजदूरों को चार से पांच साइकिल ही बेंच रहे हैं।
- खतरा मोल लेकर साइकिल उपलब्ध करा रहे दुकानदारों ने इस बंदी में घाटा पूरा करने के लिए लगे हाथ कीमत भी बढ़ा दी है।
- झंडेवालान में साइकिल कारोबार से जुड़े एक दुकानदार नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं
- कि अन्य दिनों में भी साइकिलों को मजदूर ही खरीदते थे। पर मांग बहुत कम थी,
- लेकिन पूर्णबंदी के दौरान एकदम से मांग बढ़ गई है।
- कोई साधन नहीं होने की वजह से साइकिल ही उनके सामने एक मात्र विकल्प बचा है।
- एक अन्य विक्रेता ने बताया कि यह बाजार का नियम है
- कि मांग बढ़ने और आपूर्ति कम होने से वस्तुओं के दाम बढ़ जाते हैं।
- बीते एक-दो महीने से स्टैंडर्ड साइकिल की मांग अचानक से बढ़ गई है।
- यही कारण है कि जहां यह साइकिल की कीमत पहले 3000 रुपए थी।
- वही साइकिल आजकल 4000 रुपए से लेकर 4700 रुपए तक बिक रही है।
- मंगलवार से एक बार फिर से बाजार खुले हैं। यदि आपूर्ति ठीक-ठाक रही तो मांग घट सकते हैं।
- पर आपूर्ति पर असर पड़ने पर कीमत बढ़ सकते हैं।
साइकिल ही एक मात्र विकल्प
- साइकिल खरीदने वाले मजदूरों का कहना है कि हमारे पसा साइकिल ही एक मात्र विकल्प हैं
- इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है।
- झारखंड निवासी प्रवासी श्रमिक राम कुमार ने बताया कि वह लक्ष्मी नगर में एक होटल में काम करता था। होटल बंद है।
- अब पैसों की तंगी होने लगी। तभी उसने टीवी पर देखा के कई लोग साइकिल से ही अपने गांव जा रहे हैं।
- उसने भी खूजरी खास साइकिल बाजार से जाकर ज्यादा कीमत पर एक साइकिल खरीदी और कुछ जरूरत के सामान लेकर वह अपने गांव चला गया।
याद रहेंगे यह दृश्य
- राजमार्गों पर लंबी साइकिल कतारों में चल रहे मजदूरों को पुलिस हर जगह रोकती दिख रही है।
- पिछले दिनों मध्य प्रदेश से बिहार के लिए दिल्ली होकर जा रहे एक श्रमिक ने पांच सौ रुपए में एक पुरानी साइकिल खरीदी थी।
- साइकिल के आगे डंडे पर वह अपने दो छोटे बच्चों को बैठाकर बिहार जा रहा था।
- इसी तरह एक पत्र सोशल मीडिया पर काफी चर्चित रहा जिसमें एक मजबूर पिता ने घर पहुंचने के लिए साइकिल चोरी की थी।
- उसका पत्र पढ़कर लोगों की काफी संवेदनाएं उस मजबूर पिता के लिए दिखी थी।